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बिहार पुलिस का बड़ा फैसला: बच्चों पर मामूली अपराधों में FIR नहीं, सिर्फ गंभीर मामलों में कार्रवाई – क्या इससे भविष्य सुरक्षित होगा?

बिहार पुलिस की यह नीति बच्चों के पुनर्वास और सामाजिक समावेश की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। यदि SJPUs और CWPO प्रभावी ढंग से काम करते हैं, तो यह बच्चों को अपराध के दुष्चक्र से बचा सकता है। हालांकि, नीति की सफलता पुलिस प्रशिक्षण, जागरूकता, और निगरानी पर निर्भर करेगी। बिहार में बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए यह एक शुरुआत हो सकती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव को देखना होगा।
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पटना, 11 सितंबर 2025: बिहार पुलिस ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए घोषणा की है कि नाबालिग बच्चों के खिलाफ मामूली अपराधों में अब प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं की जाएगी। इस नीति के तहत केवल गंभीर अपराधों, जैसे हत्या, बलात्कार, या डकैती जैसे मामलों में ही FIR दर्ज होगी। इस फैसले का मकसद बच्चों को आपराधिक रिकॉर्ड के बोझ से बचाना और उनके भविष्य को सुरक्षित करना है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम वाकई बच्चों के भविष्य को संवारेगा, या इससे कानून व्यवस्था पर असर पड़ेगा? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
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बिहार पुलिस की नई नीति: क्या है बदलाव?
13 नवंबर 2024 को बिहार पुलिस ने घोषणा की कि बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र) के खिलाफ मामूली अपराधों, जैसे छोटी-मोटी चोरी, सार्वजनिक उपद्रव, या गैर-संज्ञेय अपराधों (Non-Cognizable Offenses) में FIR दर्ज नहीं होगी। इसके बजाय, ऐसे मामलों में सुधारात्मक उपायों, जैसे काउंसलिंग, सामुदायिक सेवा, या माता-पिता/अभिभावकों के साथ चर्चा पर जोर दिया जाएगा। गंभीर अपराधों (Cognizable Offenses) जैसे हत्या, बलात्कार, अपहरण, या डकैती में Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2000 के तहत कार्रवाई होगी।
इसके लिए बिहार पुलिस ने हर जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाइयां (SJPUs) बनाई हैं, जिनकी जिम्मेदारी डीएसपी या उससे उच्च रैंक के अधिकारी संभालेंगे। साथ ही, प्रत्येक थाने में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (CWPO) नियुक्त किए जाएंगे, जो बच्चों से जुड़े मामलों की निगरानी करेंगे। यह नीति जेजे एक्ट और संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) के अनुरूप है, जो बच्चों के पुनर्वास और सुधार पर जोर देती है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
बिहार में नाबालिगों द्वारा छोटे-मोटे अपराध, जैसे चोरी या झगड़ा, अक्सर सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों, शिक्षा की कमी, या पारिवारिक परिवेश के कारण होते हैं। एक X पोस्ट में कहा गया, "बच्चों की मासूमियत का शोषण गलत है, उनके भविष्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।" बिहार पुलिस का मानना है कि FIR जैसे औपचारिक कदम बच्चों को आपराधिक रिकॉर्ड के दाग में धकेल सकते हैं, जिससे उनकी शिक्षा, नौकरी, और सामाजिक जीवन प्रभावित होता है।
इसके बजाय, नई नीति निम्नलिखित पर केंद्रित है:

पुनर्वास और सुधार: बच्चों को सुधार गृहों या किशोर न्याय बोर्ड के माध्यम से काउंसलिंग और शिक्षा दी जाएगी।
जागरूकता और रोकथाम: स्कूलों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
कानूनी संरक्षण: जेजे एक्ट की धारा 27 के तहत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए विशेष अदालतें होंगी, जो गंभीर अपराधों को छोड़कर हल्की सजा या सुधारात्मक उपायों पर ध्यान देंगी।

क्या इससे बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा?
सकारात्मक प्रभाव

आपराधिक रिकॉर्ड से राहत: मामूली अपराधों में FIR न होने से बच्चों का रिकॉर्ड साफ रहेगा, जिससे भविष्य में नौकरी या शिक्षा में बाधा नहीं आएगी। एक अध्ययन के अनुसार, आपराधिक रिकॉर्ड वाले युवाओं को नौकरी मिलने की संभावना 50% तक कम हो जाती है।
पुनर्वास पर जोर: काउंसलिंग और सामुदायिक सेवा जैसे कदम बच्चों को अपराध की दुनिया से दूर रख सकते हैं। फिलीपींस में जेजे एक्ट के तहत इसी तरह की नीति से 70% नाबालिगों में सुधार देखा गया।
सामाजिक समावेश: यह नीति गरीब और वंचित बच्चों को मुख्यधारा में लाने में मदद कर सकती है, जो अक्सर छोटे अपराधों में फंस जाते हैं।

चुनौतियां और आलोचनाएं

कानून व्यवस्था पर असर: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मामूली अपराधों में FIR न दर्ज करने से छोटे-मोटे अपराध बढ़ सकते हैं। एक X यूजर ने लिखा, "क्या यह अपराधियों को बढ़ावा नहीं देगा? छोटे अपराध भी अनदेखे नहीं होने चाहिए।"
SJPUs और CWPO की प्रभावशीलता: इन इकाइयों की सफलता प्रशिक्षण और संसाधनों पर निर्भर करेगी। अगर पर्याप्त फंडिंग या स्टाफ नहीं हुआ, तो नीति कागजों तक सीमित रह सकती है।
गंभीर अपराधों की परिभाषा: 'गंभीर अपराध' की परिभाषा अस्पष्ट हो सकती है, जिससे पुलिस की मनमानी बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए, धारा 154 CrPC के तहत संज्ञेय अपराधों में FIR अनिवार्य है, लेकिन मामूली मामलों में विवेकाधिकार का दुरुपयोग हो सकता है।

बिहार में बच्चों और अपराध: आंकड़े और संदर्भ

बिहार में 2023-24 में नाबालिगों द्वारा दर्ज अपराधों में 60% छोटे-मोटे अपराध (चोरी, उपद्रव) थे।
जेजे एक्ट के तहत, 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे आपराधिक जिम्मेदारी से मुक्त हैं, और 15-18 वर्ष के बच्चों के लिए 'विवेक' (Discernment) का आकलन होता है।
बिहार पुलिस ने 2024 में डिजिटल रिकॉर्डिंग और फॉरेंसिक इकाइयों को मजबूत किया है, जो इस नीति को लागू करने में मदद कर सकता है।

क्या कहते हैं लोग?
X पर इस नीति को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। एक यूजर ने लिखा, "यह बच्चों के लिए अच्छा है, लेकिन पुलिस को गंभीरता से लागू करना होगा।" वहीं, कुछ ने इसे 'नरम नीति' बताकर कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए।

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