US टैरिफ का असर: रूसी तेल पर अमेरिकी टैक्स, भारत और वैश्विक बाजार पर प्रभाव – क्या तेल की कीमतें बढ़ेंगी?



नई दिल्ली, 11 सितंबर 2025: अमेरिका द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीद के लिए 50% टैरिफ लगाने से वैश्विक तेल बाजार में उथल-पुथल मच गई है। यह कदम भारत के रूसी तेल आयात को लक्षित करता है, जिसे ट्रम्प प्रशासन रूस-यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित करने का कारण मानता है। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है, अब इस टैरिफ के कारण आर्थिक और ऊर्जा चुनौतियों का सामना कर रहा है। सवाल यह है कि क्या यह वैश्विक तेल कीमतों में उछाल लाएगा और भारत पर इसका क्या असर होगा? आइए इसे गहराई से समझते हैं।
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US टैरिफ की पृष्ठभूमि
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अगस्त 2025 में भारत पर 25% टैरिफ लगाया था, जिसे बाद में रूसी तेल खरीद के लिए दंडात्मक 25% अतिरिक्त टैरिफ के साथ 50% तक बढ़ा दिया गया। यह कदम रूस के तेल निर्यात को रोकने और यूक्रेन युद्ध पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
टैरिफ का कारण: ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि भारत का रूसी तेल आयात रूस की युद्ध मशीन को वित्तीय सहायता देता है।
भारत की स्थिति: भारत ने इन टैरिफ को "अनुचित, अन्यायपूर्ण और अनुचित" बताया, यह कहते हुए कि उसने वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने के लिए रूसी तेल खरीदा, जैसा कि पहले बाइडेन प्रशासन ने प्रोत्साहित किया था।
अन्य देश: ब्राजील को भी 50% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन चीन, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, पर कोई समान कार्रवाई नहीं हुई।
वैश्विक तेल बाजार पर प्रभाव
US टैरिफ और यूरोपीय संघ द्वारा रूसी तेल पर $47.60 प्रति बैरल की कीमत सीमा ने वैश्विक तेल आपूर्ति को प्रभावित किया है। भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का 88% आयात करता है और रूस से 35-40% तेल लेता है, इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।
संभावित प्रभाव:
तेल आपूर्ति में कमी: यदि भारत रूसी तेल आयात में 50% कटौती करता है (लगभग 0.5-1 मिलियन बैरल प्रति दिन), तो वैश्विक तेल आपूर्ति में कमी आएगी, जिससे ब्रेंट क्रूड की कीमतें $4-8 प्रति बैरल बढ़ सकती हैं। पूरी तरह से रूसी तेल आयात बंद होने पर कीमतें $100 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
रूस की प्रतिक्रिया: रूस ने भारत को आकर्षित करने के लिए अपने यूराल्स क्रूड की कीमतों में $2-4 प्रति बैरल की छूट दी है, जिससे भारत ने सितंबर 2025 में अपने रूसी तेल आयात को 10-20% (लगभग 150,000-300,000 बैरल प्रति दिन) बढ़ाने की योजना बनाई है।
चीन की भूमिका: चीन ने रूसी तेल की खरीद बढ़ाकर (अक्टूबर में सितंबर की तुलना में 10 गुना) वैश्विक आपूर्ति को संतुलित करने की कोशिश की है, लेकिन यह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं हो सकता।
भारत पर प्रभाव
भारत, जो रूस से सस्ते तेल के कारण 2022 से $17 बिलियन की बचत कर चुका था, अब इस टैरिफ से कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।
आर्थिक प्रभाव:
निर्यात पर असर: 50% टैरिफ से भारत के $48 बिलियन से अधिक के निर्यात (खासकर टेक्सटाइल, रत्न और आभूषण, ऑटो पार्ट्स, और समुद्री उत्पाद) प्रभावित होंगे, जिससे 40-50% निर्यात में कमी और लाखों नौकरियों का नुकसान हो सकता है।
तेल आयात बिल में वृद्धि: यदि भारत रूसी तेल आयात बंद करता है, तो इसका तेल आयात बिल FY26 में $9 बिलियन और FY27 में $11.7 बिलियन तक बढ़ सकता है।
उपभोक्ता कीमतें: रूसी तेल की जगह मध्य पूर्व या अमेरिकी तेल लेने से ईंधन की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि होगी।
भारत की प्रतिक्रिया:
कूटनीतिक प्रयास: भारत ने टैरिफ विवाद को सुलझाने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत की कोशिश की, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।
GST सुधार: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हाल के GST सुधार टैरिफ के प्रभाव को कम करने में मदद करेंगे।
वैकल्पिक आपूर्ति: भारतीय रिफाइनरों ने मार्च 2025 में अमेरिका से 66% और नाइजीरिया से तेल आयात बढ़ाया, लेकिन ये विकल्प रूसी तेल जितने किफायती नहीं हैं।
क्या तेल की कीमतें फिर बढ़ेंगी?
हां, कीमतें बढ़ने की संभावना:
आपूर्ति की कमी: यदि भारत और अन्य देश रूसी तेल आयात कम करते हैं, तो वैश्विक आपूर्ति में 1 मिलियन बैरल प्रति दिन की कमी हो सकती है, जिससे तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
महंगे विकल्प: रूसी तेल की 7% छूट खोने से भारत को मध्य पूर्वी या अमेरिकी तेल पर निर्भर होना पड़ेगा, जो महंगा है।
वैश्विक प्रभाव: अमेरिका और यूरोप में भी तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, क्योंकि रूसी तेल की कमी से वैश्विक आपूर्ति पर दबाव पड़ेगा।
कीमतें स्थिर रहने की संभावना:
रूस की छूट: रूस ने भारत को दी जाने वाली छूट को $1 से बढ़ाकर $3-4 प्रति बैरल कर दिया है, जिससे रूसी तेल आकर्षक बना हुआ है।
OPEC+ समायोजन: OPEC+ देश आपूर्ति बढ़ाकर कीमतों को नियंत्रित कर सकते हैं।
चीन की खरीद: चीन द्वारा रूसी तेल की खरीद बढ़ाने से वैश्विक आपूर्ति में कुछ हद तक संतुलन बन सकता है।
भारत के लिए विकल्प और जोखिम
भारत के सामने दो प्रमुख विकल्प हैं:
रूसी तेल आयात जारी रखना: इससे टैरिफ के कारण निर्यात पर नुकसान होगा, लेकिन तेल की कीमतें स्थिर रह सकती हैं।
रूसी तेल आयात कम करना: इससे तेल की कीमतें और आयात बिल बढ़ेगा, जिसका असर उपभोक्ताओं और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
जोखिम:
आर्थिक मंदी: मॉर्गन स्टैनली और सिटीग्रुप ने अनुमान लगाया है कि टैरिफ से भारत की GDP वृद्धि 0.5-0.8% कम हो सकती है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला: टैरिफ से भारत की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में हिस्सेदारी कम हो सकती है, जिससे चीन, वियतनाम और अन्य देशों को फायदा होगा।
राजनीतिक दबाव: टैरिफ ने भारत को रूस और चीन के साथ गठजोड़ बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है, जिससे अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है।

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