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नेपाल राजनीति: अशांति के बाद अंतरिम सरकार की तैयारी, सुशीला कार्की संभावित नेता – क्या यह स्थिरता लाएगा?

सुशीला कार्की की संभावित नियुक्ति नेपाल के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है, खासकर उनकी निष्पक्ष और भ्रष्टाचार-विरोधी छवि को देखते हुए। लेकिन, यह कदम स्थिरता लाएगा या नहीं, यह प्रदर्शनकारियों के बीच एकता, सेना और सरकार की सहमति, और कार्की की नेतृत्व क्षमता पर निर्भर करेगा। नेपाल के सामने आर्थिक संकट, हिंसा के बाद की स्थिति, और लोकतंत्र की बहाली जैसे बड़े सवाल हैं। क्या कार्की इन चुनौतियों से पार पा सकेंगी? यह समय ही बताएगा। ताजा अपडेट्स के लिए हमारे साथ बने रहें।
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नेपाल राजनीति: अशांति के बाद अंतरिम सरकार की तैयारी, सुशीला कार्की संभावित नेता – क्या यह स्थिरता लाएगा?

काठमांडू, 11 सितंबर 2025: नेपाल में हाल के दिनों में भारी अशांति और हिंसक प्रदर्शनों के बाद, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे ने देश को राजनीतिक अनिश्चितता की ओर धकेल दिया है। इस संकट के बीच, जेन-जेड प्रदर्शनकारियों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुना है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम नेपाल में स्थिरता ला पाएगा, या यह केवल अस्थायी राहत होगी? आइए इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।
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नेपाल में अशांति की पृष्ठभूमि
हाल ही में नेपाल में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, और सोशल मीडिया ऐप्स पर प्रतिबंध के खिलाफ जेन-जेड के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया, जिसमें कम से कम 25 लोगों की मौत हुई और 600 से अधिक घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने संसद, राष्ट्रपति भवन, और प्रधानमंत्री आवास सहित कई सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा।

प्रदर्शनों का कारण: सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार, और आर्थिक संकट जैसे मुद्दों ने युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया।
हिंसा का प्रभाव: काठमांडू में कर्फ्यू लागू हुआ, सेना ने सुरक्षा संभाली, और कई जगहों पर आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं।

सुशीला कार्की: कौन हैं?
सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रही हैं, जिन्होंने 2016 से 2017 तक सुप्रीम कोर्ट का नेतृत्व किया। उनकी छवि एक निष्पक्ष, भ्रष्टाचार-विरोधी, और सुधारवादी न्यायाधीश की रही है। कुछ प्रमुख बिंदु:

शैक्षिक पृष्ठभूमि: कार्की ने भारत के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से 1975 में राजनीति विज्ञान में मास्टर्स और त्रिभुवन विश्वविद्यालय से 1978 में कानून की डिग्री हासिल की।
प्रमुख फैसले: उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई ऐतिहासिक फैसले दिए, जिसमें एक मौजूदा मंत्री जया प्रकाश गुप्ता को भ्रष्टाचार के लिए जेल भेजना और नेपाली महिलाओं को अपने बच्चों को नागरिकता देने का अधिकार दिलाना शामिल है।
निष्पक्ष छवि: कार्की की कोई राजनीतिक संबद्धता नहीं है, जो उन्हें जेन-जेड प्रदर्शनकारियों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बनाती है।

जेन-जेड ने एक चार घंटे की वर्चुअल बैठक में, जिसमें 5,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया, कार्की को अंतरिम नेता के रूप में चुना। काठमांडू के मेयर बालेन शाह, जो पहले संभावित उम्मीदवार थे, ने जवाब नहीं दिया, जिसके बाद कार्की का नाम आगे बढ़ा।
अंतरिम सरकार बनाने की प्रक्रिया
जेन-जेड प्रदर्शनकारियों ने कार्की के नाम को सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल और राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल के समक्ष प्रस्तुत करने की योजना बनाई है। कार्की ने अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने की इच्छा जताई है, लेकिन उन्होंने शांति बहाली और छह से बारह महीनों में नए चुनाव कराने पर जोर दिया है।

सेना की भूमिका: नेपाल सेना ने प्रदर्शनकारियों और सरकार के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाई है, लेकिन वह नेतृत्व चयन में सीधे शामिल नहीं है।
प्रदर्शनकारियों की मांग: जेन-जेड ने स्पष्ट किया कि कोई भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा व्यक्ति नेतृत्व न करे, और कार्की की निष्पक्षता को इसकी वजह बताया।

क्या यह कदम स्थिरता लाएगा?
सकारात्मक संभावनाएं

निष्पक्ष नेतृत्व: कार्की की भ्रष्टाचार-विरोधी छवि और निष्पक्षता उन्हें एक विश्वसनीय नेता बनाती है। उनकी नियुक्ति से युवाओं का भरोसा बढ़ सकता है।
शांति बहाली: कार्की ने शांति और कानून-व्यवस्था को प्राथमिकता देने का वादा किया है, जो हिंसा से प्रभावित काठमांडू के लिए जरूरी है।
चुनाव की राह: कार्की ने छह से बारह महीनों में नए चुनाव कराने की बात कही है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत कर सकता है।
काठमांडू मेयर का समर्थन: बालेन शाह ने कार्की की नियुक्ति का समर्थन किया है, जो प्रदर्शनकारियों और स्थानीय नेतृत्व के बीच एकता को दर्शाता है।

चुनौतियां

आंतरिक मतभेद: सभी प्रदर्शनकारी कार्की के नाम पर सहमत नहीं हैं। कुछ समूह अन्य उम्मीदवारों, जैसे कुलमान घिसिंग या हर्का सम्पांग, को प्राथमिकता दे रहे हैं।
कानूनी बाधाएं: कार्की के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है, और अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति में कानूनी और संवैधानिक जटिलताएं हो सकती हैं।
सेना और सरकार की भूमिका: सेना की बढ़ती भूमिका और राष्ट्रपति की मंजूरी अनिश्चितता पैदा कर सकती है।
आर्थिक और सामाजिक संकट: हिंसा ने नेपाल की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है, और कार्की को तत्काल आर्थिक सुधार और पीड़ितों के लिए मुआवजे जैसे मुद्दों से निपटना होगा।

भारत के लिए इसका मतलब
सुशीला कार्की ने भारत के साथ अपने पुराने रिश्तों को याद करते हुए कहा कि वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की छात्रा रही हैं और भारत से नेपाल की नजदीकी को महत्व देती हैं। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि नेपाल में रहने वाले भारतीय सुरक्षित हैं। लेकिन, भारत-नेपाल संबंधों में कभी-कभी तनाव भी रहा है, जैसा कि कार्की ने अपने एक बयान में कहा, "रसोई में बर्तनों के टकराने की आवाज तो आती ही है।" भारत को नेपाल की अशांति पर नजर रखनी होगी, क्योंकि यह क्षेत्रीय स्थिरता और भारतीय पर्यटकों व श्रमिकों की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।

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नेपाल राजनीति: अशांति के बाद अंतरिम सरकार की तैयारी, सुशीला कार्की संभावित नेता – क्या यह स्थिरता लाएगा? – अमृत खबर